प्रणय

प्रणय
प्रणय

Wednesday, 31 August 2016



                                                                       पानी की बूँद 

खिड़की  के कांच  में पानी की बूंद ,
पुरानी गली लकड़ी में लगी फफूंद ,
पानी के कारण नज़ारा धुंधला है ,
देखना धुंधलेपन में मेरी भी एक कला है |

बुँदे कांच में खिसकती हैं ,
समय सी एक नहीं रहती हैं  ,
कुछ बुँदे निशाँ बन जाती हैं ,
वही पड़े पड़े सूख जाती हैं |

बाकी बूंदो की तरह वो क्यों न बही ,
क्यूँ रूकावटे वो ऐसे सहीं ,
की रूककर वहीँ निशान हो गयी,
कांच में अनचाही मेहमान हो गयी ।

उस बूंद को बह जाना था ,
बारिश की कहानी कह जाना था ,
रूककर उसने ऐसा निशान दिया ,
जैसे कोई अहसान किया ।

अरे! पगली तेरे ये निशान पुछ जायेंगे ,
बनने चली थी अमिट निशानी ,
एक पोछ में मिट जायेंगे ,
बह जाती तो अच्छा होता,
न जिल्लत होती न अनचाहा निशान होता ।

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आज नया सवेरा देखा

आज नया सवेरा देखा ,
उगता सूरज, बनता समां देखा,
उगती कलियाँ देखीं
चहचहाती चिड़िया देखीं |

इतने दिन सोते रहे ,
अँधेरे में ही जीते रहे ,
आज उजाला स्वर्णिम देखा,
अरुण का रंग सिंदूरी देखा |

आज तक कचरे वाली गलियां देखीं,
उठती  धुंध  और धुंआ देखा  ,
पर आज गलियाँ साफ़ देखीं,
और हवायों को स्वच्छ देखा |

रात भर किन किन जीवों की आवाजें सुनी ,
निर्मम , चुभती  और बेसुरी सुनी ,
आज कोयल की मीठी आवाज़ सुनी ,
आवाज़ सुरीली  और नर्म  सुनी |

कल तक हमने कड़कती भयानक बीजली देखी,
रातों का दुर्दांत कोलाहल देखा ,
आज ममतामयी सुबह में सुकून वाली वर्षा देखी ,
सुबहों का लहराता आंचल देखा |

कचरे बिनने वाली अम्मा देखी ,
स्कूल जाते बच्चे देखे ,
बनती जलेबी गर्म देखी ,
झुण्ड में जाते पक्षी देखे |

आज सुबह सुहानी देखी,
एक कहानी पुरानी देखी,
आज नया अहसास हुआ,
ओस को जब मैंने छुआ |

अरसे बाद ऐसी सुबह आयी,
बचपन की यादें संग लायी ,
रोटी में लिपटी वो शक्कर मलाई,
माँ ने जो खेलने जाने से पहले खिलाई|

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Monday, 29 August 2016

                                                           

                                                                हुस्न - ए - जहाँ 
कश्ती सी निगाहों से न देखो तुम ,
डर  है मुझे क़यामत आ जायेगी ,
और जो अगर हुस्न-ए- जहाँ  तू कुछ बोल गयी ,
बस फिर तस्वीर सी वो बातें आँखों में बस जायेंगी , 
डरता हूँ मैं कातिलाना हर  अदा का जो असर है ,
क्या खूबसूरती कुछ छोड़ तो देता रब कसर है ,
आँखें भी किस साचें में ढाली हैं ,
कँवल सी बनाकर साँचें से निकाली है ,
जिस्म में जैसे संगमरमर की चमक है ,
जैसे कोई स्फटिक की धमक है ,
बेहतर है मजहबी परदे में तो है ,
कम से कम दुनिया सलामती में तो है ,
दुआ रहेगी की तू हर चांदनी की रात दिख जाये ,
चांदनी का थोड़ा  घमण्ड तोड़ जाये  ,
ऊपर से चाँद देख  तुझे अपनी चांदनी भूल जाये  ,
अरुण की पहली किरण तेरे चरणों में पड़ जाये ,
सूर्य स्वयं अपना तेज़ त्याग तेरी आराधना कर जाये ,
अप्सराएं  स्वर्ग से  उतर  तेरे दर्शन को आयें ,
इंद्र देख तुझे कहीं उर्वशी को न भूल जाये ,
रावण तुझे उठा  सीता को न छोड़ जाये,
पर इंद्र और रावण को चेतावनी है ,
भीषण सा युद्ध धरती में न हो जाये ,
दैवीय  शक्तियां मानवीय शक्तियों से न हार जायें  ,
धरती का है जो धरती में ही रहेगा ,
अप्सराएं हमने नहीं मांगी थी, चाहे जो हो जाये,
खूबसूरती ये अवतरित हुई इस धरा में यहीं रहेगी ,
मनमानी नहीं आकाशीय ताकतों की ऐसे चलेगी ,
चाँद तरसे, सूरज तरसे , तरसे पूरा इंद्रलोक ,
ये जिस्म जैसा कोई जिस्म नहीं ढूढ लो पूरा मृत्यलोक ,
रूप अलौकिक सुंदरता का  अद्भुत पर्याय  है,
आज ये एलान है तू प्रणय से है और ये प्रणय तुझसे है  ,
जो मैं नहीं तो तू नहीं और तू नही तो मैं नहीं ,
जो कल्पनाओं के द्वार मैंने बन्द किये,जिसने तुझे ये रूप दिए ,
झुर्रियां तेरे रुख़्सारों में आएँगी और चमक तेरी फीकी पड़ जाएगी ।


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Sunday, 28 August 2016

                                      

                                      मृत्यु
अभिशाप नहीं वरदान है ,
कष्ट नहीं मुक्तिधाम है ,
बंधन नहीं आजादी है ,
आबादी है ये नहीं बर्बादी है |

झूठे हैं वो कहते जो मृत्यु विकराल है ,
ये आती तो आता आकाल  है ,
सतह की छाँव नहीं गहरा पाताल है ,
ये सुर नहीं बेसुरा बजता ताल है |

मृत्यु मुक्ति इस जगत से,
मृत्यु मुक्ति इस जलन से,
मृत्यु मुक्ति ओहापोह से,
मृत्यु मुक्ति धर्म-कर्म से |

मंझधार में जीवन हमेशा,
मृत्यु तो किनारा है ,
सुख ढूढते रहे हमेशा ,
मृत्यु तो स्वयं सुख है|


जिसकी अराधना की जीवन भर,
उसका ही तो  यह   बुलावा है ,
मृत्यु ही परमसत  है ,
न रचा किसी का छलावा है |

तुम डरते क्यूँ हो उससे,
गले जिसको लगाना है ,
क्यों बचते तुम हो उससे,
विलीन जिसमे हो जाना है|

मृत्यु सत्य , मृत्यु विराम ,
जीवन असत्य, दुःख अविराम,
मृत्यु खुशहाली, मृत्यु बहाली ,
जीवन बंधन, मचलती बेहाली |

चलो आरती मृत्यु की गायें ,
ताकि मृत्यु सुगम ही आये ,
कितने पत्थरों में फूल हमने चढ़ाये,
चलो आज मृत्यु मंदिर बनाएं  |

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Thursday, 25 August 2016




बातें कुछ कहनी थी 
मिलते नहीं थे  पर मुझे मिलने की इच्छा थी,
थोडा समय दे देते बातें कुछ कहनी थी,
खैर समय का दस्तूर था,और यही सच्चाई थी,
तुम्हे नहीं मिलना था  और मुझे  बातें कुछ कहनी थी
तुमने रास्ते बदले थे, फिर शक्ल वो अनजानी थी
देखकर भी अनदेखा था , पर बातें कुछ कहनी थी
तुम्हारे रास्ते रोकने की भरसक कोशिश थी,
बेमन मैंने रास्ता तो दे दिया ,पर बातें कुछ कहनी थी,
किताब में तेरे मुझे अपनी चिट्ठी दबानी थी ,
लिखकर मैंने फाड़ दी , पर बातें कुछ कहनी थी ,
तू सुंदर दिख रही थी तारीफ़ मुझे करनी थी ,
रूककर मै थोडा ठिठक गया , पर बातें कुछ कहनी थी ,
तेरे नाम पर मुझे एक कहानी लिखनी थी ,
लिखकर किरदार बदल दिए,पर बातें कुछ कहनी थी ,
हमारे दरमयां दास्ताने बहुत  पुरानी थी ,
यादें ताज़ा करनी थी और बातें कुछ कहनी थी ,
तुम आती थी और यूँ चली जाती थी ,
मै बोलते बोलते रुक जाता था , पर बातें कुछ कहनी थी,
आज मै अकेला खड़ा  था  और तू भी अकेली थी ,
समय सोचते निकल गया, भीड़ हो गयी, पर बातें कुछ कहनी थी,
आखिरी दिन था आज हमारे  साथ का और  कविता वो अधूरी थी ,
तूने नज़रें चुराईं,ये बात खल गयी और मै चुप रहा, पर बातें कुछ .........................





Wednesday, 24 August 2016



                                                                    मैं अश्क़ पी जाता हूँ 
मैं  अँधेरे में कभी महफ़िल सजाता हूँ ,
यादों में, कल्पनाओं में खुशियां मनाता हूँ ,
अज़ीब है तरीका ये पर क्या करूँ ,
मुझे अब आदत सी है खुशियां यूँ ही मनाने की ,
दुनिया को शायद निर्द्वन्द हंसी ये चुभती है ,
इसलिए यूँ ही मैं  हसीं अपनी छुपाता हूँ ,
पता नही क्यों ये भीड़ मुझे डराती है ,
भेड़  की खाल में भेड़िये  सी नज़र आती है ,
हो सकता है मैं पूरा गलत हूँ ,
पर अनुभवों में मेरे कुछ तो बात है ,
न चाहकर भी मैं हँस लेता हूँ ,\
कुछ घूट गम के यूँ ही छुपा के पी लेता हूँ ,
क्योंकि मानो या ना मानो ,
मैंने देखा है लोगों को दूसरों के गमो में हँसते ,
मैंने देखा है मैय्यत के पीछे महफ़िलें सजते ,
अरे वो कैसी माँ थी हँस रही थी गैर के बेटे के मरने  पर ,
कैसा वो मित्र था,जो हँसा था मित्र की बर्बादी पर ,
ऐसे ही मज़बूर नही हूँ इस दुनिया से दूरी बनाने में ,
गम को छुपाने में और अश्कों को पी जाने में । 

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                                         कल्पित चेहरा 
तसव्वुर में मैंने एक चेहरा बनाया,
रब सा नहीं उससे कहीं अच्छा बनाया,
जैसे परियों की कहानी में प्यारी सी रानी,
उसे ऐसा मैंने सपनो में सजाया ,
रोज़ वो मिलती है अपनी बातें कहती,
प्यार के बोल के अलावा एक बोल न बोलती,
गुलाब सी महक है बदन में उसके ,
कोयल के मीठे स्वर से बोल उसके ,
होंठ  जैसे  गुलाब के फूल हैं ,
आँखों में जैसे कोई कहानी है ,
बालों में जैसे पतवन सा समां ,
अंगड़ाईयों में बीती बातें पुरानी हैं,
चाल में उसके लहरों सा  बहाव है ,
बातों में गहरे उतार व चढ़ाव है ,
बैठने में उसके किसी मूरत सा अदब है,
कहानी उसकी परियों का कथन हैं ,
 झपकती आंखें दास्तां का एक पड़ाव है,
निहारना मुझे उसका जैसे कोई इतिल्ला है,
बाहों में आना भी उसकी एक कला है ,
रश्मि सी चमक खुलती आँखों में है ,
कुछ तो बात गज़ब उसकी निगाहों में है,
कल्पना है बस यही एक खलती बात है ,
असलियत नहीं बस परियों की एक जमात है|