प्रणय

प्रणय
प्रणय

Wednesday, 31 August 2016



आज नया सवेरा देखा

आज नया सवेरा देखा ,
उगता सूरज, बनता समां देखा,
उगती कलियाँ देखीं
चहचहाती चिड़िया देखीं |

इतने दिन सोते रहे ,
अँधेरे में ही जीते रहे ,
आज उजाला स्वर्णिम देखा,
अरुण का रंग सिंदूरी देखा |

आज तक कचरे वाली गलियां देखीं,
उठती  धुंध  और धुंआ देखा  ,
पर आज गलियाँ साफ़ देखीं,
और हवायों को स्वच्छ देखा |

रात भर किन किन जीवों की आवाजें सुनी ,
निर्मम , चुभती  और बेसुरी सुनी ,
आज कोयल की मीठी आवाज़ सुनी ,
आवाज़ सुरीली  और नर्म  सुनी |

कल तक हमने कड़कती भयानक बीजली देखी,
रातों का दुर्दांत कोलाहल देखा ,
आज ममतामयी सुबह में सुकून वाली वर्षा देखी ,
सुबहों का लहराता आंचल देखा |

कचरे बिनने वाली अम्मा देखी ,
स्कूल जाते बच्चे देखे ,
बनती जलेबी गर्म देखी ,
झुण्ड में जाते पक्षी देखे |

आज सुबह सुहानी देखी,
एक कहानी पुरानी देखी,
आज नया अहसास हुआ,
ओस को जब मैंने छुआ |

अरसे बाद ऐसी सुबह आयी,
बचपन की यादें संग लायी ,
रोटी में लिपटी वो शक्कर मलाई,
माँ ने जो खेलने जाने से पहले खिलाई|

========================================





No comments:

Post a Comment