हुस्न - ए - जहाँ
कश्ती सी निगाहों से न देखो तुम ,
डर है मुझे क़यामत आ जायेगी ,
और जो अगर हुस्न-ए- जहाँ तू कुछ बोल गयी ,
बस फिर तस्वीर सी वो बातें आँखों में बस जायेंगी ,
डरता हूँ मैं कातिलाना हर अदा का जो असर है ,
क्या खूबसूरती कुछ छोड़ तो देता रब कसर है ,
आँखें भी किस साचें में ढाली हैं ,
कँवल सी बनाकर साँचें से निकाली है ,
जिस्म में जैसे संगमरमर की चमक है ,
जैसे कोई स्फटिक की धमक है ,
बेहतर है मजहबी परदे में तो है ,
कम से कम दुनिया सलामती में तो है ,
दुआ रहेगी की तू हर चांदनी की रात दिख जाये ,
चांदनी का थोड़ा घमण्ड तोड़ जाये ,
ऊपर से चाँद देख तुझे अपनी चांदनी भूल जाये ,
अरुण की पहली किरण तेरे चरणों में पड़ जाये ,
सूर्य स्वयं अपना तेज़ त्याग तेरी आराधना कर जाये ,
अप्सराएं स्वर्ग से उतर तेरे दर्शन को आयें ,
इंद्र देख तुझे कहीं उर्वशी को न भूल जाये ,
रावण तुझे उठा सीता को न छोड़ जाये,
पर इंद्र और रावण को चेतावनी है ,
भीषण सा युद्ध धरती में न हो जाये ,
दैवीय शक्तियां मानवीय शक्तियों से न हार जायें ,
धरती का है जो धरती में ही रहेगा ,
अप्सराएं हमने नहीं मांगी थी, चाहे जो हो जाये,
खूबसूरती ये अवतरित हुई इस धरा में यहीं रहेगी ,
मनमानी नहीं आकाशीय ताकतों की ऐसे चलेगी ,
चाँद तरसे, सूरज तरसे , तरसे पूरा इंद्रलोक ,
ये जिस्म जैसा कोई जिस्म नहीं ढूढ लो पूरा मृत्यलोक ,
रूप अलौकिक सुंदरता का अद्भुत पर्याय है,
आज ये एलान है तू प्रणय से है और ये प्रणय तुझसे है ,
जो मैं नहीं तो तू नहीं और तू नही तो मैं नहीं ,
जो कल्पनाओं के द्वार मैंने बन्द किये,जिसने तुझे ये रूप दिए ,
झुर्रियां तेरे रुख़्सारों में आएँगी और चमक तेरी फीकी पड़ जाएगी ।
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