मजदूर हूँ मै
ये जो तुम मोहक अतिमनभावन बागान देख रहे,
ताजे फुल पत्तियां खून पसीने से इन्हें सींचा हूँ |
गगन को चीरती अनंत इमारतें देखो ,
दिनों नहीं मिला था वेतन मुझे इसे बनाने में |
विश्वविद्यालयों की
गौरवशाली इमारतें देखो ,
अनपढ़ हूँ पर हाथ है मेरा हर
नौजवां को पढ़ाने में |
देखो जो राजसी रौशन बरात
जगमगाती जा रही,
अँधेरा था बारात में मेरी,
पर रौशन दूसरे का सफ़र किया हूँ|
जिस ताजमहल को देख तुम्हारी
आँखें हैं फटी रह जाती ,
हाथ कटते थे मेरे, जब उकेरी
इसकी मीनारें थी जाती |
देखो आज क़ुतुब है ऊँचा ,
तान सीना खड़ा गौरवशाली ,
गिर कर उससे मरा था मै,चढ
तुमने जहाँ से दुनिया निहारी |
देखो महानगर के पाताल में
जाते गहरे नाले ,
उतरकर मैंने दूषित होकर साफ़
इन्हें कर हैं डाले |
जंगलो से जाते, पहाड़ो को
चीरते देखो यह रास्ते दुर्गम,
मैंने सुनी थी जंगली
आवाजें, झेली अतिवृष्टि अतिनिर्मम |
देखो अरब में बुर्ज के करीब
समंदर में नया जहाँ बसाया,
कागजात जब्त थे मेरे , देश
न वापस मै आ पाया |
देखो हज़ारो सालों से वह
मज़बूत जो महल खड़े ,
हथौड़े, छेनी के लाखों वार
इस पर हैं मेरे पड़े |
राजमहल का एक कमरा भी नहीं
नसीब है मुझको,
कांचों की दीवारें गढ़ने हाथ
कटाने पड़े थे मुझको |
यूँ तो खुश जीवन से हूँ पर
थोडा धक्का लग जाता है,
पूरा काम करता हूँ तन से
,फिर भी वेतन जब कम आता है |
ऐसा ही कठिन जीवन है मेरा ,
मजबूर हूँ मै ,
नहीं अपेक्षा स्वर्ण मोहरों की
मुझको , मजदूर हूँ मै|
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--------प्रणय