प्रणय

प्रणय
प्रणय

Saturday, 4 June 2016

                               
     



                                                             अहसास 

पहले क्षण का अहसास :---

  उथल-पुथल मेरा मन ,
  उफान मारते अरमां हैं ,
  चंचल बालक से भी चंचल ,
  मेरे मन का अंचल है |
                   
  हिम्मत पहाड़ो को चीर देने की ,
  ताकत ऐरावत से लड़ने की ,
  काटें भरे रास्तों में फूलों का आविर्भाव हो ,
  ऐसा आशातीत है मेरा मन |

दुसरे क्षण का अहसास :---

      प्रतीत हुआ ऐसा जैसे उजड़े वन में विहार करता ,
      चला जा रहा हूँ बिना कारण अन्धकार में ,
      न हिम्मत, न आशाएं, दूर तक विश्वास नहीं ,
      निराश्वान, छिन्न – भिन्न , उजड़ा हूँ |

      
      मन में अरमां नहीं, न खुशियों के हिलोरे हैं ,
      चंचल मन की चंचलता शायद कोई स्वप्न था ,
      हिम्मत दबी कमज़ोर खंडहर रूपी मन में ,
 तो आशाएं घिरी काले बादलों में कहीं |

तीसरे क्षण का एहसास :-----
     
      अनुभव हुआ दुःख - सुख दो पहलु हैं ,
      महल खंडहरों में बदल जाते हैं ,
      आशाएं , निराशाओं तले कहीं दब जाती हैं ,
 पर खुशियाँ , किलकारी , सफलताएं फिर आती हैं |

  
     तो आशातीत हो तेरा मन ,
 उफान मारते अरमां हों  ,
      हिम्मत पहाड़ों को चीरने की ,
      दहाड़ता तेरा अंतर्मन हो |
                                          ------  प्रणय