प्रणय

प्रणय
प्रणय

Monday, 1 August 2016



समय
बस हवा की तरह कुछ पल यूँ ही गुजर जातें हैं ,
पर यादें कुछ ऐसी छोड़ जाते हैं ,
पत्थर सी लकीर हो जैसे , ऐसे रिश्ते बन जाते हैं ,
कभी ये पल ज़िन्दगी के कैसे बंधन में बंध जाते हैं ,
तो आज़ाद कभी ये जंजीरों की जकड से हो जाते हैं |

कभी हँसी  के फव्वारे थे , कभी झगड़ो के ताने थे ,
कभी ख़ुशी चेहरे पर जीत की,
तो कभी सिकन माथे पर हार की ,
कभी प्यार से बात करते थे ,
तो कभी गालियों का सहारा लेते थे ,
मै, तुम और हम सब लडें हैं बहुत झगडे हैं बहुत ,
पर फिर भी मौकों में साथ खड़े थे बहुत |

आज भी कुछ किस्से हैं सफ़र के जो अधूरे रह जायेंगे ,
जब कुछ मुसाफ़िर कारवां का साथ छोड़ जायेंगे ,
कुछ पल ऐसे होंगे जो बहुत याद आयेंगे ,
कुछ बुरी यादों के पल भी सतायेंगे ,
कुछ बातें होंगी जो तुम्हे सह्लायेंगी ,
कुछ कडवी बातें कभी कभी चुभ जायेंगी |

कभी कोई ख़ुशबू किसी बीते पल की याद दिलाएगी,
तो कभी घिरी बदरी किसी बीते सावन को जीवंत कर जायेगी,
कभी लोगों क जमावड़े तुम्हारे अड्डों की याद जगायेंगे ,
हसी किलकारी कुछ दोस्तों की तुम्हारे यारों का स्मरण कराएगी ,
पुराने रिश्ते कुछ होंगे जो बेवजह मुस्कान ले आयेंगे ,
तभी बीते लम्हे कुछ पल को वापस आएंगे |

कभी कोसोगे तुम समय को , की क्यूँ तुम बीत गये ,
कभी डांटोगे खुद को क्यूँ यूँ बदल गये ,
समय भी तुम्हे देखकर बस मुस्का देगा ,
कुछ पल यादों की देकर वह तुम्हे आगे बढ़ा देगा |

तब तुम सोचना दरिया किनारे कहीं बैठकर –
                 समय कैसे बीत जाता है ,
                 बीतता ऐसा की दोबारा न खुद को दोहराता है ,
                 यादें ही हैं जो शेष बच जाती हैं ,
                 समय समय पर जिसकी लहर दौड़ जाती है ,
                 तब एक दम सन्नाटा सा छा जाएगा ,
                 झींगुर का झंकार तब कानो पर पड़ जाएगा ,
                 तुम तब खुद को कई आवाजों से घिरा अकेले पाओगे ,
                 उन आवाजों को सुन तभी तुम आगे बढ़ जाओगे ,
                 जब भी बीते समय को तुम गुनगुनाओगे ,
                 सुख दुःख के गीतों में यूँ ही खो जाओगे |  

                                                                                                                              -  प्रणय 


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