प्रणय

प्रणय
प्रणय

Thursday, 25 August 2016




बातें कुछ कहनी थी 
मिलते नहीं थे  पर मुझे मिलने की इच्छा थी,
थोडा समय दे देते बातें कुछ कहनी थी,
खैर समय का दस्तूर था,और यही सच्चाई थी,
तुम्हे नहीं मिलना था  और मुझे  बातें कुछ कहनी थी
तुमने रास्ते बदले थे, फिर शक्ल वो अनजानी थी
देखकर भी अनदेखा था , पर बातें कुछ कहनी थी
तुम्हारे रास्ते रोकने की भरसक कोशिश थी,
बेमन मैंने रास्ता तो दे दिया ,पर बातें कुछ कहनी थी,
किताब में तेरे मुझे अपनी चिट्ठी दबानी थी ,
लिखकर मैंने फाड़ दी , पर बातें कुछ कहनी थी ,
तू सुंदर दिख रही थी तारीफ़ मुझे करनी थी ,
रूककर मै थोडा ठिठक गया , पर बातें कुछ कहनी थी ,
तेरे नाम पर मुझे एक कहानी लिखनी थी ,
लिखकर किरदार बदल दिए,पर बातें कुछ कहनी थी ,
हमारे दरमयां दास्ताने बहुत  पुरानी थी ,
यादें ताज़ा करनी थी और बातें कुछ कहनी थी ,
तुम आती थी और यूँ चली जाती थी ,
मै बोलते बोलते रुक जाता था , पर बातें कुछ कहनी थी,
आज मै अकेला खड़ा  था  और तू भी अकेली थी ,
समय सोचते निकल गया, भीड़ हो गयी, पर बातें कुछ कहनी थी,
आखिरी दिन था आज हमारे  साथ का और  कविता वो अधूरी थी ,
तूने नज़रें चुराईं,ये बात खल गयी और मै चुप रहा, पर बातें कुछ .........................





No comments:

Post a Comment