प्रणय

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Wednesday, 24 August 2016





                                                             
                                         कल्पित चेहरा 
तसव्वुर में मैंने एक चेहरा बनाया,
रब सा नहीं उससे कहीं अच्छा बनाया,
जैसे परियों की कहानी में प्यारी सी रानी,
उसे ऐसा मैंने सपनो में सजाया ,
रोज़ वो मिलती है अपनी बातें कहती,
प्यार के बोल के अलावा एक बोल न बोलती,
गुलाब सी महक है बदन में उसके ,
कोयल के मीठे स्वर से बोल उसके ,
होंठ  जैसे  गुलाब के फूल हैं ,
आँखों में जैसे कोई कहानी है ,
बालों में जैसे पतवन सा समां ,
अंगड़ाईयों में बीती बातें पुरानी हैं,
चाल में उसके लहरों सा  बहाव है ,
बातों में गहरे उतार व चढ़ाव है ,
बैठने में उसके किसी मूरत सा अदब है,
कहानी उसकी परियों का कथन हैं ,
 झपकती आंखें दास्तां का एक पड़ाव है,
निहारना मुझे उसका जैसे कोई इतिल्ला है,
बाहों में आना भी उसकी एक कला है ,
रश्मि सी चमक खुलती आँखों में है ,
कुछ तो बात गज़ब उसकी निगाहों में है,
कल्पना है बस यही एक खलती बात है ,
असलियत नहीं बस परियों की एक जमात है|










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