आजादी और इंक़लाब
मसर्रते आजादी में खुश
क्यों हो ?
अवामे मजलूम में दुखी क्यूँ
हो ?
अश्क ही हैं बहने दो तुम
इतने ग़मगीन क्यों हो ?
किस्से उस रोते तिफ्ल के
सुनने को मुंतजीर क्यूँ हो ?
हुकूमत ही तो है, दर्द-ए-अहद
है, तुम ऐसे पड़े क्यों हो ?
हमारे वालीदों की
गुस्ताखियों का यही सिला था, तुम खुद को कोसते क्यों हो ?
अब इस समय का सामना करो ,
तुम इससे रुख्सत क्यूँ हो ?
एजाज़ कुछ यूँ ही न हो
जायेगा, तुम मदीने सफ़र में क्यूँ हो ?
बादशाहत नही की तलवार से
न्याय हो, अदालत से दूर खड़े क्यूँ हो ?
सीधा नहीं खम है रास्ता ,
तुम चलो इसपर डरते क्यूँ हो ?
आज फिर इंक़लाब की जरुरत है,
तुम नमाज़ अदायगी में मुतमईन क्यूँ हो ?
कफ़न बाँध लो सर पर चलते हैं
, अमीरे शहर छोड़ो , अमीरी के आदतन क्यूँ हो ?
अलम ले चलो एक पुकार की फिर
, गूंगे से यूँ खड़े क्यूँ हो ?
पतवार लो मंझधार से जंग करो
, कश्ती-ए-साहिल से क्यूँ हो ?
तुम्हे इस वतन का वास्ता ,
हिम्मत लो सहमी हुई रूह से क्यूँ हों ?
शोला जो शिथिल हुआ, आग उसमे
भरो, तुम तकाबुल में क्यूँ हो ?
ये शहीदों की जमीन है , तुम
ऐसे मक्कारों से क्यूँ हो ?
पुकारा मादरे वतन ने तुम्हे
, तुम ऐसे बुझदिल से क्यूँ हो ?
लो बुराइयों से इंतकाम , मंजिल
से इतने दूर क्यूँ हो ?
सरफ़रोश हो , वजारत के सितम
से भयभीत क्यूँ हो ?
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