मेरे सवाल और वो चिट्ठी
सवाल मेरे , मेरे दरम्यान ही रह जाएँ ,
जवाब मेरे सवालों के कभी ना आएं ।
डर है मंजिल नहीं नाकामी होगी ,
मोहब्बत पर हामी नहीं रुखाई होगी ।
जवाब भी कहाँ तू खुलकर दे पाएगी ,
लोगों की तरेरती नज़रों से डर जायेगी ।
सवाल मेरे यूँ ही बिना जवाब रह जायेंगे ,
पर बार बार जहन में यह चिल्लायेंगे ।
सुलगती आग यह कहीं बुत जायेगी ,
यह चिट्ठी जब दोबारा न लौटकर आएगी ।
बेहतर है जिल्लत मेरी होने से बच जाए ,
भेजी हुई चिट्ठी अपनी राह ही भटक जाये ।
पर लगता है कभी तू सवालों का जवाब दे ,
न सही इस जालिम दुनिया में , रूहानी दुनिया में मेरा साथ दे ।
सवाल मेरे और वो चिट्ठी अधूरी कहानी रह जायेगी ,
पर मेरे और तेरे अकेलेपन में याद जरूर आएगी ।
हो सकता है तू इस अधूरेपन को कल्पनाओ में पूर्ण करे ,
जो हो ना पाया इस जग जीवन में उसे सपनो से संपूर्ण करे
आज कुछ सवाल मन में लिए यूँ ही सो जाता हूँ ,
शायद किरणे सुबह की कुछ जवाब दें , ये आशा करता हूँ ।
- प्रणय
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