प्रणय

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Tuesday, 9 August 2016




चौखट बन्द पड़ी थी 

कभी ठण्ड में , माँ जहाँ बैठकर गर्म कपडे बुनती थी ,
जगह वो आज सूनी थी , और चौखट बंद पड़ी थी |

इच्छा बहुत थी छत में जाकर बैठने की पुरानी यादें सहेजने की ,
पर सीढ़ियों पर अनचाहे पेड़ उगे थे और चौखट बंद पड़ी थी|

दो कमरों का वह मकान .चहलकदमी जहाँ मैंने करी थी ,
लालसा थी कमरों को देखने की , पर चौखट बंद पड़ी थी |

उस घर के पीछे से जाता वो खेत का रास्ता ,
दौड़ जाना चाहता था वहां को मै पर चौखट बंद पड़ी थी|

किताबें और कहानियाँ जहाँ बैठकर मैंने पढ़ी थी .
अहसास वह फिर करना था मुझको पर चौखट बंद पड़ी थी |

छज्जे पर बैठकर देखे थे कई द्शहरों के मेले मैंने ,
सोचा वहीँ बैठकर गलियाँ निहारूं पर चौखट बंद पड़ी थी |

जहाँ मेरे प्रभु श्री राम की मूर्ति खडी थी ,
शीष  वहां झुकाना चाहता था पर चौखट बंद पड़ी थी |

जहाँ पर खटिया बाबा की मेरे रखी थी ,
आराम की चाह थी मुझको पर चौखट बंद पड़ी थी |

आँगन पर सिलबट्टा था जहाँ धनिया मिर्च पीसी जाती थी ,
वही बैठना था सुकून से मुझको पर चौखट बंद पड़ी थी |

गलियारा वह , जहाँ मेरी बदमाशियों पर मेरी माँ हँसी थी ,
फिरसे देखना था मुझे वो हस्ता चेहरा पर चौखट बंद पड़ी थी |

                                                -----प्रणय 


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