प्रणय

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Sunday, 25 September 2016

                                               

                                                    मिट्टी का कुम्हार को संदेश
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मिट्टी पहुंची कुम्हार के पास
पूछी कुम्हार से मुझे क्या बनाओगे
कुम्हार ने प्यार से कहा
जो तुम बनना  चाहो
मिट्टी कही मुझे घडा बना दो
मैं सबकी प्यास बुझाउंगी
कुम्हार कहा तुम दीप बन जाओ
फिर दिवाली में प्रज्जवलित हो जाओ
मिट्टी बोली पर फिर मै
शान कुछ शाम की रह जाउंगी
उसके बाद कहीं फेक दी जाउंगी
कुम्हार ने कहा अच्छा तो
तुम्हे लक्ष्मी या गणेश बना दूँ
फिर तो तुम पूजी  जाओगी
इस पर मिट्टी सोच में पड़ी
पर फिर बोल झटके से पड़ी
कि मुझमे सेवा का भाव बहुत है
मुझे कोई पूजे ये तो ऋण बहुत है   
बस मुझे घडा या सुराही बना दे
जल तो मेरा मित्र है
वो भी बरस मुझमे ही समाता है
हम दोनों में प्यार बहुत है
मेरी उसके संग कट जायेगी
वो भी मुझमे आ ठंडक पायेगा
फिर गले का सूखा नम कर जायेगा
हम दोनों प्रकृति के अंश हैं
इसलिए हमें परोपकार पसंद है
नदियाँ बहती किसके लिए
जीव जानवर और तुम सब  के लिए
नदी से मेरा गहरा नाता
उसका पानी मुझपर ही बहकर जाता
पेड़ दे रहे फल किसके लिए
खुद के लिए नही वरन हम सब के लिए
वृक्ष हो या नदी ही क्यूँ न हो
हमारा जीवन मानवता के लिए समर्पित क्यूँ न हो ?
कुम्हार कहा मिट्टी से फिर
की अच्छा तुझे फूलदान  बनाता हूँ
कोई रईस खरीद लेगा तुझे
तू उसके गलियारों की शोभा बढ़ाना
मिट्टी बोल पड़ी देख मुझे ना सिखा
एक दिन तुझे भी मुझमे मिल जाना है
मै सिखा देती हो तुझे गहरी एक बात
पुराण वेद कह गए हैं कि इस बावत
की पर के उपकार हेतु जीवन है
समाज को समर्पित ही अच्छा जीवन  है
मुझमे देख नीव गहरी खुदी है
इमारतें उची तनी हैं
मुझे शोहरत से सोहबत नहीं
अरे बहुत महल देखे मैंने
बस यही सच्चाई है कि कण कण मेरा
मानवता का परचम थाम चीखता है
कि अगर धरती में आये हो
तोह थोडा उपकार करो
ढलो कोई आकार लो
मज़बूत बनो पर मानवता के लिए
देख गर्मी दूर है पर मुझे घड़े में ढाल देना
मुझे कहीं कोने में रख देना
समय पर पानी मुझपर मिल जायेगा
किसी आँगन में मै रख दी जाउंगी
थके हारे बालक की प्यास बुझाउंगी
मेरी ये कहानी तुम सबको सुनाना
सबको मानवता को पाठ पढ़ाना
घड़ा मुझसे बना है पर मै घडा बनना चाहती
मेरी नज़र में घडा उपकार का प्रतीक  है
बस अब एक बात और सुन ले
तू मिट्टी से है ये याद रखना
उपर उठा अपने अहं को नही पर विचारों को
पर रहना चलना  मिटटी में सीख
और मेरी ये सारी बातें जहन में रखना
बस अब सुराही बन सुकून मिल जाएगा
प्यासा जब कोई तरसता  मुझतक आएगा
















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