प्रणय

प्रणय
प्रणय

Friday, 3 June 2016


                                      




                       
                  
                माँ
ज़िन्दगी ही नहीं , स्रोत जीवन का हो तुम
ममता की मूरत हो , करुणा का पर्याय हो तुम|

दर्द तुमने मेरे लिए बार बार सहा
ख़ुशी रहे चेहरे में मेरी इसका तुम्हे ख्याल रहा |  

मेरे पहले गिरे आंसू से लेकर आज तक जितने आंसू बहे
उन  सब  आसुओं  को पोछता  तेरा हाथ रहा |

एक महीने आश्रय इस युग में कोई देता नहीं
नौ महीने माँ तूने अपने शरीर में पालन मेरा किया |

मेरी हर लगी चोट में पड़े थे थप्पड़ गालो में  मेरे  
पर जानता हूँ मलहम ढूढ़ते बहे थे निरंतर आंसू तेरे |

गलतियों में भी  मेरी, तेरी ममता ने मुझे सराहा ,
भटकते कदमो को मेरे, उंगलियों ने तेरे  दिया सहारा |

यूँ तो दूरी नहीं कभी तुझसे महसूस किया हूँ ,
पर एहसास में अकेलेपन के  याद तुझे किया हूँ |

रास्ते  अगर लायें रुकावटों के निशाँ ,
हर रुकावट में माँ तेरा नाम लिया हूँ |

बचपन में थक हार कर नसीब गोद था तेरा,
आज थका परिस्थियों से ताकता आँचल तेरा |

हर पर्व में माँ तुझे दूरी  मुझसे सताती होगी ,
त्यौहार में जब गुझिया बनाते रोयी जाती होगी |

क़र्ज़ तेरा मुझपर बहुत बड़ा है ,
इस क़र्ज़ से कभी  निवृत्त न हो पाऊंगा,
तेरी अमूल्य ममता का क्या  मोल लगाऊंगा,
बस जब भी पास आऊंगा खुशियाँ छोड़ जाऊँगा | 

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--------प्रणय 

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