आँखें कोमल सी पलकों के
भीतर से,
गहरी आस लिए आँखों को ताक
रही |
चाँद तुम भी प्रकृति की ओट
से ,
इस धरा को ऐसे ही ताकते हो
||
आँखें तो अलौकीक हैं , मुख
से ज्यादा बातें कहती हैं,
मिलकर ये आँखों से तेरी,
चंचल सी क्रीडा करती हैं |
चाँद तुम्हारा भी तो धरा से
ऐसा ही रिश्ता है,
तुम जब होते करीब तो, छाती
धरा की साँसे गहरी लेती हैं||
आँखें तरसती इंतज़ार में ,
आँसुओ की भाषा कहती हैं ,
पलकें झपकते देर नहीं लगती,
मोती ये बिखेरती हैं|
चाँद तुम भी चांदनी में मोती
सा चमकते हो ,
धरा उज्वलित होती है ,
प्रफुल्लित खुद को कहती है ||
आँखें मेरी इन आँखों के तेज़
असर से वाकिफ़ हैं,
इन्हें पता है, नशे सा जादू कुछ ख़ास ही इनमे होता है|
धरा भी है वाफिक चाँद तुम्हारी अतुल्य चांदनी से ,
मयस्सर यह होती, जब धरा गुजरती घनघोर अँधेरी रातों से ||
आँखों के रौब को अंजना का ख्वाब है ,
चार चाँद लगते , जब होती
सुरमामय मृगनयनी है |
चाँद, धरा को भी तुम्हारे
आधे की आरजू नहीं ,
धरा की भी इबादत है तुम्हे
पूर्णिमा में पाने की ||
आंखें एक दुसरे को टकटकी
लगाये अनवरत देखना चाहती हैं,
लाख चाह लें आँखें फिर भी,
द्रश्य माया के क्रम ये तोडती हैं |
चाँद , धरा को पूर्णिमा में
तुम करते रोशन सराबोर हो ,
पर प्रकृति की जिद्द है कि
इस अद्भुत क्रम का खंडन हो ||
पलकें शायद आँखों के इस खेल
को भरसक समझती हैं,
इसलिए छुपाने
आँखों को,ये अक्सर ही झपकती हैं|
चाँद प्रकृति को भी धरा से
तुम्हारा पूर्ण मिलन मंज़ूर नहीं ,
इसलिए ऐसा क्रम है बनाया
जिसमे रूप तुम्हारा एक नहीं ||
इन आँखों का आँखों से मिलन
, अहसास अनोखा होता है ,
यह सत्य इन्हें पता , यह अहसास अजर नहीं होता है |
धरा , चाँद को है पता साथ
तुम्हारा उससे अमर नहीं ,
यह तो चंचल मन है उसका,
मिलने छोड़ता जो कोई कसर नहीं ||
अनंत गहरायी, अद्भुत क्रीडा
, चुम्बकीय चंचलता क्या कहना,
खुलती झपकती टकटकी लगाये प्यार
से निहारती नयना |
चाँद , धरा ने पाने एक दुसरे को क्या यत्न प्रयास
न करा ,
मुझे प्रणय इन सब से है,
प्रेम पर्याय ये आँखें ,चाँद और धरा ||
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प्रणय
प्रयास सराहनीय है...��
ReplyDeleteधन्यवाद !!!! बहुत बहुत आभार !!!
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