जीवन : एक दिन
जन्म हुआ प्रभाकर उदय ,
लाली किरणें छा गयीं ,
फूल-कली भी जाग गयी ,
जीवन प्रथम अध्याय यही |
सूरज, किरणें मध्य में छा गयीं ,
जवानी धधकती आ गयी ,
दम इतना कर गुजरे कुछ भी ,
जीवन द्वितीय अध्याय यही |
संझा की किरणें शीतल ,
जीवन भी हुआ समतल ,
अनुभव का ताप यही ,
जीवन तृतीय अध्याय यही|
अस्ताचल में गया समा ,
रैन , निशा को जग में रमा ,
बुढापा अन्त है आ गया यहीं ,
जीवन अंतिम अध्याय यही |
-================================-------------- प्रणय
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